एक लड़का जिसने बचपन में आसमान में उड़ने का सपना देखा। बड़ा हुआ तो उसे पायलट बनने का मौका लगभग मिल ही गया था, लेकिन किस्मत ने कुछ और ही तय कर रखा था।बात हो रही है डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की, जिन्हें आज हम मिसाइल मैन के नाम से जानते हैं।दरअसल, कलाम लड़ाकू विमान उड़ाना चाहते थे लेकिन चयन सूची में नौवें स्थान पर आकर चूक गए। केवल 8 सीटें थीं और यही उनके लिए झटका साबित हुआ, मगर उन्होने माना कि ये उनकी हार नहीं थी।इसके बाद उन्होंने वो कर दिखाया जो आज भी समस्त भारतियों को प्रेरणा देता है - बिना पंखों वाला एक ऐसा विमान बनाया जिसे देखकर देश को गद-गद हो गया और बेहद गर्व करने लगा।पायलट नहीं बन पाए, लेकिन उड़ान कभी नहीं रुकीएयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद कलाम को DTD&P (Air) में पहली नौकरी मिली। वहीं से उनके सपनों की उड़ान ने एक नया मोड़ लिया।शुरू में ही उन्होंने अपने ऑफिसर आर. वरदराजन के साथ मिलकर एक पराध्वनिक लक्ष्यभेदी विमान डिजाइन कर दिया।साथ ही, दिल्ली में डार्ट टारगेट और वर्टिकल लैंडिंग प्लेटफॉर्म जैसे इनोवेशन पर भी काम किया।3 साल बाद उन्हें बंगलौर के एरोनॉटिक्स डिवेलपमेंट एस्टैब्लिशमेंट में भेजा गया और यहीं पर उनकी जिंदगी का सबसे बड़ा प्रयोग शुरू हुआ, भारत का पहला स्वदेशी हॉवरक्राफ्ट।नंदी: सिर्फ देखने के लिए नहीं, उड़ने के लिए बना था ये विमानकलाम उस 4 सदस्यीय टीम के लीडर बने जिन्हें स्वदेशी हॉवरक्राफ्ट यानी मंडराने वाले विमान "नंदी" को बनाना था।पंखोंरहित, हल्का और तेज़ रफ्तार ये मशीन सिर्फ प्रयोग नहीं थी, बल्कि सपना थी। कलाम ने अपनी टीम से कहा था, "ये सिर्फ देखने के लिए नहीं, उड़ने के लिए है।"गौर करने वाली बात ये है कि इसके डिजाइन और उड़ान में पूरी टीम का समर्पण झलकता था, और तो और, रक्षा मंत्री वी.के. कृष्णा मेनन ने कलाम के साथ इस ‘नंदी’ में उड़ान भी भरी।अधिकारियों के विरोध के बावजूद, मेनन ने कलाम को ही विमान उड़ाने का इशारा किया।जब नंदी से रास्ता रॉकेट तक पहुंचाहालांकि बाद में सरकार ने विदेश से हॉवरक्राफ्ट मंगाने का फैसला लिया और ‘नंदी’ की योजना अधर में रह गई। कलाम निराश हुए, लेकिन यहीं से उनकी किस्मत फिर पलटी।प्रो. एम.जी.के. मेनन के साथ एक बार फिर उन्होंने उड़ान भरी और इसके बाद उन्हें इंडियन स्पेस रिसर्च टीम के लिए रॉकेट इंजीनियर के इंटरव्यू का बुलावा आया।बात करें इंटरव्यू की, तो विक्रम साराभाई, प्रो. मेनन और परमाणु आयोग के अधिकारी सर्राफ के सामने उन्होंने न केवल खुद को साबित किया बल्कि ऐसा प्रभाव छोड़ा कि अगले ही दिन उनका चयन हो गया।देश को आत्मनिर्भर बनाने वाले वैज्ञानिकSLV-3, अग्नि, पृथ्वी जैसे प्रोजेक्ट्स का नेतृत्व कर उन्होंने भारत को आत्मनिर्भर बनाया। राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने वैज्ञानिक की भूमिका को नहीं छोड़ा बल्कि उसे विस्तार दिया। उन्होंने छात्रों से मिलना-जुलना कभी बंद नहीं किया।बात करें प्रेरणा की, तो रामेश्वरम के स्कूल में एक बार उनके शिक्षक ने बताया था कि पक्षी कैसे उड़ते हैं। बस वहीं से उनके सपनों को पंख लगे और फिर उन्होंने खुद देश को उड़ान दी।युवाओं से संवाद और प्रेरणा का सफरकलाम साहब ने अपने जीवन के अंतिम दो दशकों में 1.5 करोड़ युवाओं से संवाद किया।उन्होंने बताया कि कैसे हर नाकामी आगे की सफलता की नींव होती है। वो कहते थे, "सपने वो नहीं जो नींद में आते हैं, सपने वो हैं जो सोने नहीं देते।"उनकी सोच थी कि युवा ही देश को महान बनाएंगे और यही सोच उन्हें छात्रों का सबसे पसंदीदा वैज्ञानिक और राष्ट्रपति बनाती है।आज भी कलाम साहब की स्मृतियां करती हैं प्रेरितरामेश्वरम स्थित उनका घर और राष्ट्रीय स्मारक आज भी लाखों श्रद्धालुओं और पर्यटकों का ध्यान खींचता है। लोग उनकी समाधि पर सिर झुकाकर श्रद्धांजलि देते हैं।उनके बनाए मिसाइल मॉडल, कांस्य प्रतिमा और जीवन की झलकियों को देखकर हर किसी के चेहरे पर गर्व दिखाई देता है।आप क्या सोचते हैं इस खबर को लेकर, अपनी राय हमें नीचे कमेंट्स में जरूर बताएँ। Comments (0) Post Comment
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