जयशंकर की चीन यात्रा से पहले तिब्बत को लेकर तनातनी, चीन बोला- “शिजांग भारत के लिए बोझ बन चुका है”!

विदेश मंत्री एस. जयशंकर इस हफ्ते चीन की राजधानी बीजिंग की यात्रा पर जा रहे हैं, जहां वे 14 और 15 जुलाई को शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) की विदेश मंत्रियों की मीटिंग में हिस्सा लेंगे।


लेकिन इस अहम दौरे से ठीक पहले चीन ने एक तीखा बयान देकर रिश्तों में फिर से तनाव की हवा भर दी है।


चीन के दूतावास ने रविवार को दलाई लामा के उत्तराधिकारी को लेकर भारत को अप्रत्यक्ष तौर पर चेतावनी दी।


उनका कहना है कि दलाई लामा से जुड़े मामले भारत और चीन के रिश्तों में 'एक कांटा' बन चुके हैं, जो भारत के लिए बोझ बनते जा रहे हैं।


क्यों गरमा गया मामला?


दरअसल, दलाई लामा ने हाल ही में कहा था कि उनके उत्तराधिकारी को मान्यता देने का अधिकार तिब्बती बौद्धों के ट्रस्ट के पास होगा।


यानी ये फैसला चीन नहीं बल्कि तिब्बती बौद्ध समुदाय लेगा। चीन इससे नाराज़ हो गया और उसने तुरंत इसका विरोध जताया।


चीन का कहना है कि दलाई लामा का उत्तराधिकारी तय करना उसका आंतरिक मामला है और इसमें किसी भी बाहरी देश या संस्था का दखल मंजूर नहीं है। चीन, तिब्बत को “शिजांग” कहता है और उसे अपने क्षेत्र का हिस्सा मानता है।


वहीं भारत, तिब्बती शरणार्थियों को मानवता के नज़रिए से देखता है और लंबे समय से दलाई लामा को यहां सम्मानजनक स्थान मिला हुआ है।


चीनी दूतावास की तीखी टिप्पणी


बीजिंग स्थित चीनी दूतावास के प्रवक्ता यू जिंग ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा कि “भारत के कई पूर्व अधिकारी और रणनीतिक विशेषज्ञ दलाई लामा के उत्तराधिकारी को लेकर ऐसे बयान दे रहे हैं जो भारत सरकार की आधिकारिक नीति से मेल नहीं खाते।”


उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर भारत को बेहद सतर्क रहने की जरूरत है, क्योंकि तिब्बत पर कोई भी टिप्पणी चीन की संप्रभुता में हस्तक्षेप मानी जाएगी।


उन्होंने ये भी जोड़ा कि “शिजांग कार्ड खेलना भारत के लिए आत्मघाती कदम होगा, और यह रिश्तों में और खटास ही लाएगा।”


LAC पर तनाव और जयशंकर की यात्रा


यह बयान ऐसे वक्त आया है जब विदेश मंत्री जयशंकर बीजिंग के दौरे पर जा रहे हैं। 2020 में गलवान घाटी की झड़प के बाद भारत और चीन के रिश्तों में भारी तनाव आ गया था।


हालांकि पिछले कुछ महीनों में दोनों देशों ने कुछ अहम कदम उठाए हैं जैसे कि सैनिकों की कुछ हिस्सों से वापसी, सीमावर्ती इलाकों में फ्लैग मीटिंग्स और व्यापार को फिर से गति देने की कोशिशें।


जयशंकर की यह यात्रा भी इस तनाव को कम करने और द्विपक्षीय संवाद को आगे बढ़ाने के लिए देखी जा रही थी, लेकिन अब तिब्बत को लेकर आया चीन का बयान इस प्रक्रिया को मुश्किल बना सकता है।


चीन की रणनीति और भारत की दुविधा


चीन तिब्बत के हर मुद्दे को बेहद संवेदनशील मानता है, और वह नहीं चाहता कि भारत या कोई और देश दलाई लामा या उनके उत्तराधिकारी को लेकर कुछ भी बोले। लेकिन भारत के लिए यह एक जटिल स्थिति है।


भारत में दलाई लामा लंबे समय से शरण लिए हुए हैं और तिब्बती समुदाय को यहां धार्मिक आज़ादी दी जाती है।


भारत सरकार सीधे तौर पर दलाई लामा के उत्तराधिकारी को लेकर कुछ नहीं कहती, लेकिन भारतीय नागरिक समाज और कई रणनीतिक विशेषज्ञ खुलकर इस पर चर्चा करते हैं। यही चीज चीन को चुभती है।


आगे क्या हो सकता है?


जयशंकर और उनके चीनी समकक्ष वांग यी के बीच होने वाली मीटिंग में यह तिब्बत मुद्दा खुलकर सामने आ सकता है।


हालांकि दोनों पक्ष इस बात का ख्याल रख सकते हैं कि SCO जैसे बहुपक्षीय मंच पर सीधे टकराव से बचा जाए।


फिलहाल यह साफ है कि भारत और चीन के बीच रिश्ते इतने सहज नहीं हैं जितना वे दिखते हैं।


एक तरफ दोनों देश व्यापार और सीमाओं को लेकर कदम मिला रहे हैं, तो दूसरी ओर तिब्बत, अरुणाचल और बॉर्डर जैसे मुद्दे फिर से दरार की वजह बनते जा रहे हैं।


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