गाजियाबाद में करोड़ों रुपए की जमीन से जुड़ा एक बड़ा घोटाला सामने आया है। इलाहाबाद एमपी-एमएलए कोर्ट के आदेश पर सिहानी गेट थाने में भाजपा के पूर्व राज्यसभा सांसद अनिल अग्रवाल समेत छह लोगों के खिलाफ धोखाधड़ी और जालसाजी की धाराओं में मामला दर्ज किया गया है। इस मामले में आरोप है कि पीड़ितों की जमीन पर फर्जी दस्तावेज़ों के सहारे कब्जा किया गया। शिकायत और जमीन का मामला शिकायत राजस्थान के झुंझनूं जिले के श्यामलाल और उनके भाइयों ने की है। उनका आरोप है कि गाजियाबाद के अर्थला क्षेत्र में उनकी करीब 5060 वर्ग मीटर जमीन पर फर्जीवाड़ा कर कब्जा किया गया। परिवार जब इस जमीन को बेचने की तैयारी कर रहा था और खतौनी निकलवाई, तो उन्हें पता चला कि 26 अप्रैल 2018 को यह जमीन पहले ही हरिश्चंद्र रामकिशन चैरिटेबल ट्रस्ट के नाम दर्ज हो चुकी थी। पीड़ितों का कहना है कि ट्रस्ट से जुड़े लोगों ने जाली आधार कार्ड, पैन कार्ड और पहचान पत्र बनवाकर नकली दानपत्र तैयार किया। इसके बाद सब-रजिस्ट्रार कार्यालय कविनगर में इसका पंजीकरण करवा दिया गया। इस पूरी योजना में ट्रस्ट के ट्रस्टी अनिल अग्रवाल, दीपांजलि अग्रवाल, संतोष अग्रवाल, गोपाल अग्रवाल और अतुल भूषण के नाम सामने आए हैं। आरोप और साजिश पीड़ित पक्ष का कहना है कि यह पूरी प्रक्रिया उनकी जानकारी और सहमति के बिना की गई। न सिर्फ उनकी जमीन हड़पी गई, बल्कि सरकारी रजिस्ट्रेशन कार्यालय में भी जाली दस्तावेज़ों का इस्तेमाल हुआ। उनका आरोप है कि यह सोची-समझी साजिश थी ताकि करोड़ों की कीमत वाली संपत्ति पर कब्जा किया जा सके। राजनीतिक और प्रशासनिक पहलू अनिल अग्रवाल का नाम सामने आने से राजनीतिक हलकों में हलचल बढ़ गई है। वे लंबे समय से गाजियाबाद की राजनीति और कारोबार से जुड़े रहे हैं और कई शिक्षण संस्थानों का संचालन भी करते हैं। उनके खिलाफ मामला दर्ज होने से राजनीतिक चर्चाओं में यह विषय गरमा गया है। पुलिस की जांच कोर्ट के आदेश पर दर्ज एफआईआर के बाद सिहानी गेट थाना पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी है। पुलिस का कहना है कि पीड़ितों द्वारा दिए गए दस्तावेज़ों और सब-रजिस्ट्रार कार्यालय में हुई रजिस्ट्री की प्रक्रिया की बारीकी से जांच की जाएगी। इसके अलावा यह भी देखा जाएगा कि किस तरह से जाली दस्तावेजों के सहारे जमीन पर कब्जा किया गया। प्रशासनिक तंत्र और कानूनी सवाल यह मामला सिर्फ जमीन हड़पने तक सीमित नहीं है। इसने प्रशासनिक तंत्र और राजनीतिक रसूख पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रकार की योजनाएं अगर कानूनी और प्रशासनिक निगरानी के बिना होती हैं, तो आम नागरिकों की संपत्ति को खतरा हो सकता है। गाजियाबाद की यह घटना यह दर्शाती है कि सरकारी रजिस्ट्री और प्रशासनिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और सख्त निगरानी की आवश्यकता है। साथ ही यह मामला यह भी स्पष्ट करता है कि राजनीतिक और आर्थिक रसूख का दुरुपयोग कर आम नागरिकों की संपत्ति पर कब्जा किया जा सकता है। अब पुलिस और न्यायालय इस मामले में संपूर्ण जांच और कानूनी कार्रवाई करेंगे ताकि दोषियों को उचित सजा मिल सके। Comments (0) Post Comment