रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से दुनिया भर में तेल बाजार में जबरदस्त उतार-चढ़ाव देखा गया। पश्चिमी देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगाए, लेकिन भारत ने अपनी ज़रूरतों को देखते हुए रूस से बड़ी मात्रा में क्रूड ऑयल खरीदना जारी रखा। इसका फायदा यह हुआ कि भारत को कच्चा तेल सस्ते दामों पर मिला और पेट्रोल-डीजल की कीमतें काबू में रहीं। अब सवाल उठता है कि अगर भारत रूस से तेल खरीदना बंद कर दे, तो ईंधन की कीमतें कितनी बढ़ जाएंगी? आइए आसान भाषा में समझते हैं। भारत की तेल पर निर्भरता आपको जानकारी के लिए बता दें की, भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता देश है। करीब 85% तेल की ज़रूरतें आयात से पूरी होती हैं। इराक, सऊदी अरब और यूएई जैसे खाड़ी देश लंबे समय से भारत को तेल सप्लाई करते आ रहे हैं। लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद रूस भारत का बड़ा सप्लायर बन गया है। 2021 तक भारत रूस से बहुत कम तेल लेता था, लेकिन 2022 के बाद रूस भारत का टॉप क्रूड ऑयल सप्लायर बन गया। वजह साफ थी – रूस भारत को भारी छूट पर तेल बेच रहा था। रूस ने भारत और चीन जैसे देशों को एक तरह से स्पेशल डिस्काउंट देना शुरू कर दिया। दुनिया के बाज़ार में जो तेल 100 डॉलर का मिल रहा था, वही रूस हमें करीब 8-10 डॉलर सस्ता बेच रहा था।•इससे भारतीय कंपनियों को लागत कम पड़ी।•आम जनता को भी फायदा हुआ क्योंकि पेट्रोल-डीजल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय स्तर की तुलना में ज्यादा नहीं बढ़ीं।•यही वजह है कि भारत लंबे समय से रूस से तेल खरीदना जारी रखे हुए है। अगर रूस से तेल न मिले ? मान लीजिए भारत रूस से तेल लेना बंद कर देता है, तो उसे खाड़ी देशों और अफ्रीका जैसे अन्य बाजारों पर निर्भर होना पड़ेगा। लेकिन खाड़ी देशों या बाकी बाज़ारों से तेल खरीदने पर भारत को कोई छूट नहीं मिलेगी। वहाँ से तेल हमें सीधी अंतरराष्ट्रीय दरों पर लेना पड़ेगा। यानी हर बैरल पर भारत को करीब 8-10 डॉलर ज़्यादा खर्च करना होगा। यही अतिरिक्त खर्च पेट्रोल-डीजल की कीमतों में भी दिखेगा। ऐसे में आम लोगों के लिए हालात मुश्किल हो सकते हैं। पेट्रोल-डीजल की कीमतें आसानी से ₹8 से ₹12 प्रति लीटर तक बढ़ सकती हैं। सोचिए, अगर आज आप 100 रुपये में एक लीटर पेट्रोल भरवा रहे हैं, तो कल वही पेट्रोल 110 रुपये तक पहुंच सकता है। मतलब दिल्ली, मुंबई या बेंगलुरु जैसे शहरों में पेट्रोल की कीमत ₹120 प्रति लीटर के करीब भी पहुंच सकती है। आम आदमी और महंगाई पर असर देखिये पेट्रोल-डीजल सिर्फ गाड़ी चलाने का ईंधन नहीं है, बल्कि यह पूरे बाजार से जुड़ा हुआ है। तेल महंगा होते ही ट्रक और बसों का किराया बढ़ेगा। माल ढुलाई महंगी होगी, जिससे खाने-पीने की चीज़ें और रोज़मर्रा का सामान भी महंगा हो जाएगा। यानी सीधे तौर पर महंगाई (Inflation) बढ़ेगी और आम आदमी की जेब ढीली होगी। क्या कर सकती है सरकार? भारत सरकार के पास कुछ विकल्प हैं:•टैक्स में राहत – एक्साइज ड्यूटी और वैट कम करके कीमतों को नियंत्रित किया जा सकता है।•तेल स्रोतों का विविधीकरण – खाड़ी देशों, अमेरिका और अफ्रीका से ज्यादा तेल खरीदना।•विकल्प तलाशना – बायोफ्यूल, इलेक्ट्रिक वाहन और नवीकरणीय ऊर्जा पर ज्यादा ध्यान देना। बहरहाल, साफ है कि रूस से सस्ता तेल भारत के लिए वरदान साबित हुआ है। अगर भारत रूसी तेल खरीदना बंद कर दे, तो पेट्रोल-डीजल की कीमतें अचानक बढ़ सकती हैं। माना जा रहा है कि दाम ₹8 से ₹12 प्रति लीटर तक ऊपर चले जाएंगे। इसका मतलब है कि हर महीने घर का बजट और ज़्यादा बिगड़ जाएगा—ऑफिस आने-जाने का खर्च बढ़ेगा, सब्ज़ी से लेकर रोज़मर्रा का सामान महंगा होगा और महंगाई की मार हर किसी को झेलनी पड़ेगी। यही कारण है कि भारत अभी भी रूस से तेल खरीदना जारी रखे हुए है। Comments (0) Post Comment
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