Pew Research की लेटेस्ट रिपोर्ट बताती है कि वैश्विक स्तर पर ईसाई और बौद्ध समुदायों में धर्म परिवर्तन की गतिविधियां सबसे ज्यादा देखने को मिल रही हैं।गौर करने वाली बात ये है कि 100 में से 17.1 ईसाई धर्म छोड़ चुके हैं, जबकि सिर्फ 5.5 नए ईसाई बने। यानी कुल मिलाकर ईसाई समाज को 11.6 लोगों का नेट लॉस झेलना पड़ा। इसमें आश्चर्यजनक नहीं तो भी हैरानी तो जरूर है कि किसी धर्म को इतनी भारी नुक़सान सहना पड़ा हो।इसी प्रकार बौद्ध धर्म में स्थिति और भी उलझी हुई नज़र आती है। डायरेक्ट आंकड़ों के अनुसार 100 में से 22.1 बौद्धों ने धर्म छोड़ा, जबकि सिर्फ 12.3 नए बौद्ध बने।इससे बौद्ध समुदाय का शुद्ध नुकसान 9.8 लोगों का हुआ। यानि बौद्ध धर्म में धर्म परिवर्तन की दर सबसे तेज है।‘Nones’ में कैसे आई बढ़त?अब यहां गौर करने वाली बात ये है कि धर्मांतरित होने की होड़ में सबसे बड़ा फायदा धार्मिक रूप से असंबद्ध लोगों को हुआ है, जिन्हें ‘Nones’ भी कहा जाता है।रिपोर्ट बताती है कि 100 में से 24.2 लोग धर्म छोड़कर Nones बन गए, जबकि सिर्फ 7.5 लोग Nones छोड़कर किसी धर्म में शामिल हुए।इसका मतलब हुआ कि इनका शुद्ध लाभ 16.7 है। ये आंक़ड़ा साफ करता है कि आज के जमाने में युवा पीढ़ी में धार्मिक पहचान से दूरी और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को अपनाना ज्यादा रुचिकर हो गया है।हिंदू और इस्लाम में स्थिरता, वजह क्या?लेकिन अगर बात करें हिंदू और इस्लामी धर्मों की, तो इनमें ग्रोथ-डिक्लाइन के आंकने लगभग बराबर रहें।यानी हिंदू और मुस्लिम समुदायों को धर्म परिवर्तन से किसी तरह का नेट नुकसान या फायदा नहीं हुआ।दरअसल इससे ये पढ़ती है कि इन समुदायों में सामाजिक और पारिवारिक बंधन, धार्मिक रीति-रिवाज और सांस्कृतिक मजबूती इतनी है कि धर्म परिवर्तन की लहरें उन्हें आसानी से जकड़ नहीं पाती हैं।क्या वजह है इतने बड़े अंतर की?धर्म परिवर्तन की इस दुनिया में इतनी गहराई देखकर आप सोच सकते हैं कि आखिर क्यों ईसाई और बौद्ध धर्म में ज्यादा गिरावट रही, लेकिन हिंदू और इस्लाम में फिलहाल स्थिरता? सबसे बड़ी वजह लगती है सामाजिक-धार्मिक संरचना का अंतर।जहां अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा या यूरोप जैसे हाई HDI देशों में (HDI 0.8 से ऊपर) 18% वयस्कों ने बचपन का धर्म छोड़ा, वहीं कम HDI वाले देशों जैसे अफ्रीका और दक्षिण एशिया में ये दर सिर्फ 3% तक सीमित रही।इसका मतलब हुआ कि आर्थिक सुरक्षा, शिक्षा स्तर, सोच की खुली स्वतंत्रता, और महामारी-वैक्सीन जैसे सामयिक बदलावों के कारण उच्च HDI देशों में धार्मिक सीमाओं को परिसर बाहर कदम बढ़ाने की छूट मिल रही है।इंडिया‑स्पेसिफिक विज़न: क्या हिंदू धर्म सुरक्षित?भारत जैसे देश में, जहां सांस्कृतिक-राजनीतिक संबंधों के कारण धर्म पर मजबूती है, धर्म परिवर्तन दर में बदलाव अपेक्षाकृत धीमा रहेगा।लेकिन यह भी सच है कि शहरी और युवा वर्ग डिजिटल युग के चलते अधिक कमजोर हो सकता है।गौर करने वाली बात यह है कि अगर भारत में कोई बड़ा बदलाव आया, तो उसका असर शहरी युवाओं में देखा जा सकता है, जो बदलती सोच और व्यक्तिगत विचारधारा के चलते धर्म से थोड़ी दूरी बना सकते हैं।क्या हो सकती है अगली चाल?यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि Pew Research की रिपोर्ट आने के बाद कई देशों में धार्मिक संगठन इस बदलाव की तरफ गंभीर हो गए हैं और वो युवा वर्ग के लिए आध्यात्मिक रिट्रीट, सोशल वर्क और समुह संवाद का अभियान चला रहे हैं।लेकिन सबसे बड़ा संकेत ये है कि धार्मिक स्वतंत्रता बढ़ती पीढ़ी में जरूरत बन गई है, और हर धर्म को इस बात का सामना करना होगा कि सिर्फ रिव़र इवेंट्स से ही नहीं बल्कि चरित्र निर्माण और सामाजिक कनेक्शन से इसे जीवंत रखना है।धर्म का बदलता रुख और अर्थशास्त्रPew Research रिपोर्ट यह बताती है कि अब धर्म सिर्फ आस्था का नाम नहीं रहा, बल्कि प्रतिस्पर्धा में एक सामाजिक पोजिशन बन गया है।आर्थिक-शैक्षिक विकसित देश में धर्म का रूप तेजी से बदल रहा है, लेकिन जहां संस्कृति मजबूत है, जैसे भारत में, वहां अभी तक इसका नुकसान कम है।लेकिन यह भी बड़ा सच है कि अनेकों धर्मों को समय के साथ नए सवालों से मुकाबला करना होगा, और धार्मिक संस्थाओं को आस्था और स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाना होगा, क्योंकि 21वीं सदी की युवा पीढ़ी पहचान को लेकर अब खुद सोच रही है।आप क्या सोचते हैं इस खबर को लेकर, अपनी राय हमें नीचे कमेंट्स में जरूर बताएँ। Comments (0) Post Comment