बिहार में वोटर लिस्ट से लाखों नाम हटे! जानिए क्या आपके नाम पर भी है खतरा?

बिहार में वोटर लिस्ट को लेकर एक हैरान करने वाला ट्रेंड सामने आया है। चुनाव आयोग के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) के पहले चरण के बाद राज्य में रजिस्टर्ड वोटर्स की संख्या में बड़ी गिरावट देखी गई है।


अब ये सवाल उठने लगा है कि क्या 2005 के बाद पहली बार किसी चुनाव में बिहार में वोटर्स की संख्या कम होगी?


कितने वोटर्स कम हुए?


चुनाव आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, 24 जून 2025 तक बिहार में कुल 7.89 करोड़ रजिस्टर्ड वोटर्स थे। लेकिन 27 जुलाई तक आते-आते ये संख्या घटकर 7.24 करोड़ हो गई।


यानी महज एक महीने में लगभग 65 लाख वोटर्स वोटर लिस्ट से बाहर हो गए। ये गिरावट करीब 8% की है, जो कि अब तक के ट्रेंड्स की तुलना में बहुत ज्यादा है।


पिछले चुनावों में वोटर्स की संख्या में लगातार इज़ाफा हुआ करता था। लेकिन इस बार की गिरावट ने सबको चौंका दिया है।


क्या इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है?


नहीं। बिहार में इससे पहले भी एक बार, साल 2005 में दो विधानसभा चुनावों के बीच वोटर लिस्ट में गिरावट देखी गई थी। उस समय फरवरी और अक्टूबर के चुनावों के बीच वोटर्स की संख्या में 2.5% की कमी आई थी।


लेकिन इस बार एक साल से भी कम वक्त में 8% की गिरावट दर्ज की गई है, जो इस ट्रेंड को और भी असामान्य बनाती है।


2020 और 2024 से भी कम


2020 के विधानसभा चुनाव में बिहार में 7.36 करोड़ वोटर्स थे और 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान ये संख्या बढ़कर 7.73 करोड़ हो गई थी।


लेकिन अब ये आंकड़ा 7.24 करोड़ पर आ गया है, यानी 2024 की तुलना में भी करीब 6.2% कम और 2020 से 1.6% कम।


क्या ये फाइनल लिस्ट है?


नहीं। चुनाव आयोग ने अभी ये फाइनल लिस्ट जारी नहीं की है। ये सिर्फ SIR प्रक्रिया का पहला चरण है।


आयोग ने कहा है कि 1 अगस्त से 1 सितंबर 2025 तक दावे और आपत्तियों के जरिए वोटर लिस्ट को संशोधित किया जाएगा।


वहीं, 1 अक्टूबर या उससे पहले जो युवा 18 साल के हो जाएंगे, उन्हें भी वोटर लिस्ट में जोड़ा जाएगा।


यानी अभी वोटर्स की संख्या बढ़ सकती है। लेकिन फिलहाल की स्थिति ये दिखा रही है कि वोटर लिस्ट में भारी कटौती की गई है।


क्यों घट रहे हैं वोटर्स?


डुप्लीकेट और मृत मतदाताओं का नाम हटाना: SIR प्रक्रिया के दौरान आयोग द्वारा ऐसे वोटर्स के नाम हटाए जा रहे हैं जो डुप्लीकेट हैं, जिनकी मृत्यु हो चुकी है, या जो स्थानांतरित हो गए हैं।


आधार लिंकिंग और फोटो पहचान पत्र की जांच: इस बार आयोग ज्यादा सख्ती से पहचान की जांच कर रहा है।


ज्यादा पारदर्शिता और सफाई की कोशिश: आयोग का उद्देश्य वोटर लिस्ट को ज्यादा सटीक और साफ बनाना है।


2025 और 2005 में क्या समानताएं?


2005 में भी एक बड़ा बदलाव तब आया था जब चुनाव आयोग ने EPIC (Electors Photo Identity Card) यानी वोटर फोटो पहचान पत्र के लिए एक विशेष अभियान चलाया था। उसी दौरान मतदाताओं की संख्या में 2.5% की गिरावट दर्ज की गई थी।


अब 2025 में भी एक तरह से वही दोहराया जा रहा है, जहां आयोग वोटर लिस्ट को अधिक पारदर्शी और सटीक बनाने के लिए बड़े स्तर पर सुधार कर रहा है। लेकिन बिहार जैसे राज्य में ये गिरावट क्या वाकई चिंता की बात है?


बिहार में प्रजनन दर देश के अन्य राज्यों की तुलना में ज्यादा है। 2001 से 2011 की जनगणना के बीच राज्य में वयस्क जनसंख्या में 28.5% की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी। 


इसका मतलब ये है कि सामान्य तौर पर वोटर्स की संख्या बढ़नी चाहिए थी, न कि घटनी।


क्या प्रवास एक वजह है?


हां, ये संभव है। बिहार से बड़ी संख्या में लोग दूसरे राज्यों में काम करने के लिए जाते हैं, और हो सकता है कि वहां वो वोटर रजिस्ट्रेशन करा चुके हों। इसके कारण भी राज्य की वोटर लिस्ट में गिरावट हो सकती है।


क्या आगे बढ़ेगी संख्या?


बिलकुल। चुनाव आयोग की प्रक्रिया अभी अधूरी है। 1 अगस्त से 1 सितंबर के दौरान अगर लोगों ने फिर से दावा दाखिल किया और नाम जोड़वाए, तो संख्या में सुधार हो सकता है।


बिहार में 2005 के बाद पहली बार ऐसा हो रहा है कि वोटर लिस्ट में नाम कम हुए हैं। हालांकि ये गिरावट SIR प्रक्रिया का हिस्सा है और इसमें सुधार की संभावना भी है।


लेकिन ये जरूर दिखाता है कि चुनाव आयोग अब वोटर लिस्ट को अधिक पारदर्शी और साफ बनाने की दिशा में गंभीरता से काम कर रहा है।


आप क्या सोचते हैं इस खबर को लेकर, अपनी राय हमें नीचे कमेंट्स में जरूर बताएँ।


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