पाकिस्तान और बांग्लादेश, दोनों भारत के पड़ोसी देश हैं और इनका इतिहास भारत से गहराई से जुड़ा है। 1971 की जंग ने इस इतिहास को हमेशा के लिए बदल दिया। इसी जंग ने बांग्लादेश को जन्म दिया और पाकिस्तान के इतिहास पर गहरा दाग छोड़ा। आज, जब दोनों देशों की आर्थिक हालत खराब है और वे रिश्तों को सुधारने की बातें कर रहे हैं, तब एक बार फिर पुराना जख्म ताजा हो गया है। दरअसल, पाकिस्तान के उप-प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार हाल ही में ढाका पहुंचे। उनका मकसद दोनों देशों के रिश्तों को बेहतर बनाना और "बिछड़े भाई" जैसे जुमलों से दोस्ती का माहौल बनाना था। खासकर ऐसे समय में जब बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना भारत में शरण लिए हुए हैं, पाकिस्तान ने मौके का फायदा उठाने की कोशिश की। लेकिन डार के दौरे में जो हुआ, उसने पाकिस्तान की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। बांग्लादेश का सख्त रुख डार ने ढाका में दावा किया कि 1971 के जनसंहार और युद्ध अपराधों पर पाकिस्तान पहले ही दो बार माफी मांग चुका है और यह मुद्दा अब खत्म हो चुका है। लेकिन बांग्लादेश ने इस दावे को सीधे खारिज कर दिया। बांग्लादेश के अंतरिम विदेश सलाहकार एम. तौहीद हुसैन ने साफ कहा, “मैं डार से सहमत नहीं हूं। अगर ऐसा होता तो समस्याएं कब की खत्म हो गई होतीं।” हुसैन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में खुलकर कहा कि बांग्लादेश ने 1971 के लिए औपचारिक माफी, संपत्तियों पर दावा और फंसे हुए पाकिस्तानी नागरिकों के मुद्दे को सामने रखा है। हुसैन ने आगे कहा कि यह उम्मीद करना गलत होगा कि 54 साल पुरानी समस्याएं एक ही दिन में हल हो जाएंगी। उन्होंने यह भी साफ किया कि दोनों देश अब भी इस बात पर सहमत हैं कि रिश्तों को आगे बढ़ाने के लिए इतिहास के मुद्दों पर बातचीत जरूरी है। यानी रिश्तों में मिठास तभी आ सकती है जब पुराने जख्मों पर ईमानदारी से मरहम लगाया जाए। पाकिस्तान की कोशिश और असफलता दरअसल इशाक डार का मकसद था कि बांग्लादेश के साथ "नए सिरे" से दोस्ती की शुरुआत की जाए। उन्होंने इस्लाम का हवाला देते हुए कहा कि धर्म हमें दिलों को साफ करने और रिश्ते सुधारने की सीख देता है। लेकिन उनकी ये कोशिश बांग्लादेश के सामने फीकी पड़ गई। बांग्लादेश ने यह साफ कर दिया कि माफी और न्याय के बिना कोई नया रिश्ता संभव नहीं। बहरहाल, पाकिस्तान और बांग्लादेश की दोस्ती की कोशिशें एक बार फिर अधर में लटक गई हैं। यह मामला सिर्फ राजनीति नहीं बल्कि इतिहास और इंसाफ से जुड़ा है। बांग्लादेश की जनता अब भी 1971 के घावों को याद करती है—हजारों हत्याएं, महिलाओं के साथ अत्याचार और तबाही। ऐसे में माफी के बिना रिश्तों में भरोसा कैसे बनेगा? अब असली सवाल यही है कि क्या पाकिस्तान और बांग्लादेश सच में अतीत की सच्चाई को स्वीकार करके आगे बढ़ेंगे, या फिर ये दोस्ती सिर्फ बयानों और मीठी बातों तक ही सिमट कर रह जाएगी? Comments (0) Post Comment
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