ओवैसी का वार, बिहार में SIR की प्रक्रिया पर सवाल, करोड़ों वोटर्स होंगे वंचित?

दाखिल-खारिज के वक्त ECI की SIR प्रक्रिया बिहार में गरमा गई है। AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने चुनाव आयोग के उस बयान को संदेह भरा बताते हुए कहा कि एक महीने में करोड़ों वोटर्स का रिकॉर्ड अपडेट करना लगभग असंभव है।


उन्होंने पूछा, “आप इसे महज एक महीने में कैसे कर सकते हैं? इसके पीछे क्या तर्क है?”


उनका तर्क है कि इतनी जल्दी में लोगों के नाम रद्द या अपडेट होते-होते राज्य के करोड़ों वोटर्स चुनाव से वंचित हो सकते हैं।


SIR में जल्दबाजी, वोटर हित से किया खिलवाड़


ओवैसी ने चेताया कि अगर प्रक्रिया रद्द नहीं हुई तो “कल चुनाव हो जाए तो कई नाम छूट जाएंगे, दोष कौन लेगा?”


उन्होंने याद दिलाया कि सुप्रीम कोर्ट ने लाल बाबू हुसैन केस में कहा था कि बिना नोटिस और उचित प्रक्रिया के किसी के नाम को मतदाता सूची से नहीं हटाया जा सकता।


उनका कहना है कि ECI की संशोधित कवायद बिहार में लोकतंत्र को बुरी तरह प्रभावित कर देगी।


बस एक महीने में SIR कैसे पुरा होगा?


बिहार में विधानसभा चुनाव की तैयारियाँ जोरों पर हैं और आयोग ने 24 जून को SIR पर अधिसूचना जारी की है।


इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिए आयोग ने 1,54,977 बूथ स्तरीय एजेंट नियुक्त किए हैं। लेकिन ओवैसी ने सवाल उठाया कि क्या यह संख्या और समय पर्याप्त हैं?


उन्होंने कहा कि बेरोज़गार युवा पलायन के कारण भारत के दूसरे हिस्सों में रहते हैं, सीमांचल बाढ़ से छह महीने तक कटता रहता है, ऐसे में बीएलए बूथ पर कैसे पहुंचेंगे और नाम अपडेट करेंगे?


उनका कहना था, “आपके घर BLA कितनी बार आएगा? एक- दो- तीन बार? यह काफी चौंकाने वाला है।”


इंडिया गठबंधन की चिंता एक साथ


ओवैसी ही नहीं, बल्कि कांग्रेस, SP, RJD, CPI और CPM (माले) समेत अन्य विपक्षी दलों ने भी ECI से मुलाकात की और अपनी आपत्तियां दर्ज कराईं।


उनकी चिंता है कि इस SIR प्रक्रिया के चलते बिहार में 2 करोड़ से अधिक वोटर्स का अधिकार जोखिम में है।


कांग्रेस ने इसे “वोटबंदी” बताकर प्रधानमंत्री नोटबंदी की याद दिलाई और कहा कि बिहार में लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।


ऐतिहासिक चेतावनी और लोकतांत्रिक संकट


इस मुद्दे पर गौर करने की ज़रूरत है कि बिहार जैसे राज्य में इतनी जल्दी में जिलेवार वोटर सूची का गहन पुनरीक्षण लोकतांत्रिक संस्थाओं पर गंभीर शक पैदा कर सकता है।


आम सड़ा-गला प्रशासनिक समय-सीमा में इतना बड़ा बदलाव लागू करने की कोशिश से चुनाव की पारदर्शिता पर भी सवाल उठते है।


Z-जैसी प्रक्रिया पर सवालिया निशान


SIR की प्रक्रिया वैसे तो विशेष और गहन रिव्यू के लिए है लेकिन बीजेपी शासित केंद्र सरकार अक्सर ज़ोर देकर कह रही है कि यह लोकतंत्र की शुद्धता के लिए ज़रूरी है।


लेकिन विपक्ष का कहना है कि आयोग ने एक साथ इतने सारे सवालों को बेवजह बुलंद किया है।


नतीजा यह कि SIR के चलते बिहार में युद्ध का माहौल बन गया है। विपक्ष का आरोप है कि आयोग की जल्दबाज़ी से करोड़ों वोटर्स का अधिकार छिन सकता है और लोकतंत्र पर बड़ा हमला होगा। वहीं आयोग का कहना है कि प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष रहेगी।


यह मामला सिर्फ बिहार की प्रक्रिया नहीं रह गया, बल्कि पूरे देश के लोकतंत्र पर बड़ा सवाल खड़ा कर रहा है।


सवाल है कि क्या हर राजनीतिक दल के वोटर SIR से सुरक्षित रह पाएंगे, या फिर आयोग की इसे रद्द करने की मांग ही चुनाव की सच्ची जीत होगी।


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