मीटिंग में नड्डा-रिजिजू के ना आने से आहत हुए धनखड़? जानिए 21 जुलाई को दिनभर क्या हुआ?

"बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,

जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।"


कबीर का ये दोहा हम सभी को अपनी सोच के अंदर झांकने की सीख देता है, लेकिन जब देश का कोई बड़ा नेता खुद को अपने ही लोगों से अलग-थलग महसूस करे, तो मामला सिर्फ सोच का नहीं, बल्कि सियासत का भी हो जाता है।


कुछ ऐसा ही हुआ जब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया।


धनखड़ का इस्तीफा और मीटिंग की कहानी


74 साल के धनखड़ ने राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा भेजते हुए कहा कि वो सेहत की वजह से पद छोड़ रहे हैं, लेकिन कांग्रेस नेता जयराम रमेश के मुताबिक इसके पीछे कोई और गहरी बात है।


उन्होंने बताया कि 21 जुलाई को 2 बार एक मीटिंग हुई, जिसमें कुछ ऐसा हुआ जिसने पूरी तस्वीर बदल दी।


जयराम रमेश ने क्या बताया


रमेश ने कहा कि 21 जुलाई को दोपहर 12:30 बजे राज्यसभा की एक मीटिंग हुई जिसमें कई बड़े नेता जैसे जेपी नड्डा और किरेन रिजिजू भी मौजूद थे।


सबने तय किया कि अगली मीटिंग शाम 4:30 बजे होगी, लेकिन शाम को जब मीटिंग शुरू हुई तो नड्डा और रिजिजू वहां नहीं आए। खास बात ये थी कि धनखड़ को बताया भी नहीं गया कि वो क्यों नहीं आ रहे।


इस बात से उपराष्ट्रपति को काफी नाराजगी हुई, और उन्होंने मीटिंग को अगली दोपहर के लिए टाल दिया।


1 बजे से 4:30 के बीच क्या बदला?


रमेश ने साफ कहा कि दोपहर 1 बजे से शाम 4:30 बजे तक कुछ ऐसा जरूर हुआ, जिसकी वजह से हालात बदल गए। उसी शाम के बाद अचानक धनखड़ का इस्तीफा आ गया।


रमेश ने कहा कि उपराष्ट्रपति ने हमेशा सरकार की तारीफ की, लेकिन साथ ही किसानों की बात, कोर्ट की जवाबदेही और सत्ता के अहंकार पर सवाल भी उठाए।


उनका मानना है कि धनखड़ नियमों और प्रक्रिया को मानने वाले थे, लेकिन शायद उन्हें लग रहा था कि अब कोई उनकी बात नहीं सुन रहा।


भूपेश बघेल का बयान और सियासी भूचाल


कांग्रेस नेता भूपेश बघेल ने भी इस इस्तीफे पर हैरानी जताई। उन्होंने कहा, “धनखड़ जी सोमवार को मीटिंग में पूरी तरह ठीक थे। अचानक इस्तीफा देना बताता है कि मामला सिर्फ सेहत का नहीं है। कुछ बड़ा चल रहा है जो अब सामने आएगा।”


उनका ये बयान इस बात की ओर इशारा करता है कि आने वाले दिनों में देश की राजनीति में बड़ा उलटफेर हो सकता है।


इस्तीफे के पीछे की दूसरी बातें


धनखड़ का इस्तीफा ऐसे वक्त आया जब राज्यसभा में एक जज को हटाने का नोटिस विपक्ष की ओर से दिया गया था, और खास बात ये थी कि धनखड़ ने इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया था, जिससे सरकार को झटका लगा।


यही नहीं, कुछ महीने पहले विपक्ष ने उन पर महाभियोग चलाने की कोशिश भी की थी, जो बाद में खारिज हो गई।


इन सब बातों से साफ है कि उपराष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठे धनखड़ बीच का रास्ता अपनाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन शायद सरकार और विपक्ष दोनों से समर्थन नहीं मिल रहा था।


क्या अब कोई नई भूमिका की तैयारी है?


सियासी हलकों में चर्चा है कि क्या धनखड़ अब कोई नई राजनीतिक भूमिका निभाने जा रहे हैं? क्या उन्होंने इस्तीफा किसी खास रणनीति के तहत दिया है?


फिलहाल ये साफ है कि उनका इस्तीफा सिर्फ एक स्वास्थ्य कारण नहीं, बल्कि उनके मन की गहराई से जुड़ा फैसला है, और ये भी कि ये फैसला आने वाले समय में देश की राजनीति में नई कहानी लिख सकता है।


आप क्या सोचते हैं इस खबर को लेकर, अपनी राय हमें नीचे कमेंट्स में जरूर बताएँ।


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