कर्ज में डूबे पाकिस्तान पर दुनिया इतनी मेहरबान क्यों? जानिए किन देशों ने की मदद?

वित्त वर्ष 2024-25 में पाकिस्तान को विदेशी देशों और संस्थानों से 26.7 अरब अमेरिकी डॉलर यानी करीब 7.58 लाख करोड़ पाकिस्तानी रुपये की मदद मिली है। ये वो आंकड़ा है जो किसी आर्थिक रूप से स्थिर देश के लिए भी सपना लग सकता है।


सवाल उठता है, आखिर एक ऐसा देश जिसकी इकोनॉमी लगातार डूब रही है, उसे बार-बार इतनी बड़ी मदद क्यों मिल रही है?


जानकारी के मुताबिक, पाकिस्तान को अमेरिका, चीन, सऊदी अरब, कुवैत और UAE जैसे देशों से मोटी रकम मिली है। साथ ही IMF और अन्य वैश्विक वित्तीय संस्थानों ने भी पाकिस्तान को लोन देने में झिझक नहीं दिखाई।


इकोनॉमी गिरती रही, मदद बढ़ती रही


खास बात ये है कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था इस वक्त बेहद नाजुक दौर से गुजर रही है। देश में महंगाई चरम पर है, बेरोजगारी बढ़ रही है, GDP लगातार गिर रही है और विदेशी मुद्रा भंडार बेहद सीमित हो गया है। इसके बावजूद पाकिस्तान विदेशी लोन उठाने में सफल रहा है।


स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान और वित्त मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि 2024-25 में पाकिस्तान ने 26.7 अरब डॉलर का विदेशी लोन लिया, जो कि पिछले साल के मुकाबले ज्यादा है।


कौन-कौन कर रहा है मदद?


आर्थिक मामलों के मंत्रालय के मुताबिक, इस मदद का बड़ा हिस्सा कुछ खास देशों से आया है:


  • IMF: 2.1 अरब डॉलर

  • सऊदी अरब, चीन, कुवैत, UAE: कुल मिलाकर 12.7 अरब डॉलर नकद

  • एशियाई विकास बैंक (ADB): 2.1 अरब डॉलर

  • विश्व बैंक: 1.7 अरब डॉलर

  • इस्लामिक डेवलपमेंट बैंक: 716 मिलियन डॉलर


इसके अलावा पाकिस्तान को 4.3 अरब डॉलर का वाणिज्यिक कर्ज भी मिला, जिसमें से ज़्यादातर पुराने चीनी लोन का रिफाइनेंसिंग हिस्सा था।


आखिर क्यों मिल रही है इतनी मदद?


इकोनॉमिस्ट शरद कोहली के मुताबिक, पाकिस्तान की यह मदद सिर्फ मानवीय या आर्थिक कारणों से नहीं मिल रही। उन्होंने TV9 डिजिटल से खास बातचीत में कहा, “ये कर्ज भू-राजनीतिक समीकरणों से भी जुड़ा है। कई देश पाकिस्तान को अपने प्रभाव में बनाए रखना चाहते हैं, इसीलिए मदद करते रहते हैं।”


कोहली के अनुसार, IMF और वर्ल्ड बैंक जैसी संस्थाएं चाहती हैं कि पाकिस्तान दिवालिया न हो, ताकि अंतरराष्ट्रीय आर्थिक स्थिरता बनी रहे।


कितनी टिकाऊ है ये मदद?


गौर करने वाली बात ये है कि पाकिस्तान को मिली 26.7 अरब डॉलर की रकम में से केवल 3.4 अरब डॉलर ही परियोजना वित्तपोषण के लिए था, जबकि बाकी अधिकतर रकम नकद सहायता, पुनर्वित्तपोषण या बजट सहायता के तौर पर दी गई।


वित्त मंत्रालय के अनुसार, पाकिस्तान का लोन-टू-GDP अनुपात अब स्थायी स्तर से ऊपर है। और सकल वित्तीय आवश्यकता (GFR) का अनुपात GDP के 15% से ऊपर चला गया है, जो कि अस्थिरता का संकेत है।


यानी पाकिस्तान पर अब जो बोझ है, वह उसे लंबे समय तक ढोना मुश्किल हो सकता है।


IMF और दूसरे संस्थानों की भूमिका


फिलहाल IMF, वर्ल्ड बैंक और ADB जैसे संस्थानों ने पाकिस्तान को आर्थिक रूप से "बचाए रखने" की नीति अपनाई हुई है।


  • IMF ने 2.1 अरब डॉलर दिए

  • ADB ने पाकिस्तान को तय बजट से 500 मिलियन डॉलर ज्यादा दिए


विश्व बैंक ने इस वित्त वर्ष के लिए कोई नया सहायता लोन मंजूर नहीं किया, लेकिन पिछली किश्तें जारी कर दीं


साथ ही, सऊदी अरब ने तेल के लिए 6% ब्याज पर 200 मिलियन डॉलर की सुरक्षित सुविधा दी, जो कि काफी महंगा सौदा है।


क्या आगे भी ऐसे ही चलता रहेगा पाकिस्तान?


कहना गलत नहीं होगा कि पाकिस्तान का भविष्य अब बाहरी मदद पर टिका है। अपने संसाधनों से वह न तो विकास कर पा रहा है, और न ही लोन चुकाने की स्थिति में है। 


ऐसे में सवाल उठता है कि क्या पाकिस्तान का कर्ज इतना बढ़ जाएगा कि आने वाले समय में दिवालिया होने की नौबत आ जाएगी? या फिर दुनिया इसी तरह उसे चलते रहने के लिए कर्ज देती रहेगी?


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