देश की राजधानी दिल्ली और एनसीआर में आवारा कुत्तों को लेकर चल रहे विवादों के बीच सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक अहम फैसला सुनाया। यह मुद्दा लंबे समय से सामाजिक संगठनों, स्थानीय निवासियों और प्रशासन के बीच टकराव का कारण बना हुआ था। कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि शेल्टर होम में भेजे गए सभी स्वस्थ आवारा कुत्तों को तुरंत छोड़ा जाएगा। केवल बीमार और आक्रामक स्वभाव के कुत्तों को ही शेल्टर होम में रखा जा सकेगा।तीन जजों की पीठ का फैसलाजी हाँ, इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ ने की, जिसमें न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति संदीप मेहता और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया शामिल थे। पीठ ने अपने आदेश में कहा कि किसी भी कुत्ते को सिर्फ इसलिए शेल्टर होम में बंद नहीं किया जा सकता क्योंकि वह सड़कों पर घूम रहा है। आवारा कुत्तों का भी जीवन जीने का अधिकार है और इसे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षण प्राप्त है।नसबंदी के बाद छोड़े जाएंगे कुत्तेकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि आवारा कुत्तों की संख्या को नियंत्रित करने के लिए उनकी नसबंदी अनिवार्य रूप से कराई जाएगी। नसबंदी पूरी होने के बाद कुत्तों को वहीं छोड़ा जाएगा, जहां से उन्हें पकड़ा गया था। यह प्रक्रिया न केवल कुत्तों की बढ़ती आबादी पर नियंत्रण रखेगी बल्कि इंसानों और पशुओं के बीच संतुलन बनाए रखने में भी मदद करेगी।बीमार और आक्रामक कुत्तों पर रहेगा नियंत्रणफैसले में यह भी कहा गया कि यदि कोई कुत्ता बीमार है या फिर इंसानों पर हमला करने की प्रवृत्ति दिखा रहा है, तो उसे शेल्टर होम में रखा जाएगा। वहां उसका इलाज और देखभाल की जाएगी। स्वस्थ होने के बाद उसे भी छोड़ा जाएगा। इस तरह सुप्रीम कोर्ट ने इंसानी सुरक्षा और पशु अधिकारों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश की है।पृष्ठभूमि और विवाददरअसल, दिल्ली-एनसीआर में पिछले कुछ सालों से आवारा कुत्तों की संख्या लगातार बढ़ रही है और यह एक बड़ी समस्या बन गई है। कई इलाकों में कुत्तों के हमले की घटनाएं हुई हैं, जिससे लोग डर और असुरक्षा महसूस करने लगे। वहीं, दूसरी तरफ पशु अधिकार से जुड़े संगठन लगातार यह कहते आए हैं कि कुत्तों को मारना या उन्हें जबरन कैद करना अमानवीय है। इसी विवाद के बीच कई एनजीओ और कार्यकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया और आवारा कुत्तों के अधिकारों की सुरक्षा की मांग उठाई।फैसले का महत्वसुप्रीम कोर्ट का यह फैसला इंसानों और आवारा कुत्तों के बीच लंबे समय से चले आ रहे टकराव को सुलझाने की दिशा में अहम कदम माना जा रहा है। इस आदेश से एक तरफ जहां पशु अधिकारों को मजबूती मिलेगी, वहीं लोगों की सुरक्षा को लेकर जो चिंता थी, उस पर भी काफी हद तक असर पड़ेगा। कोर्ट ने साफ कहा है कि कुत्तों की नियमित नसबंदी और टीकाकरण ज़रूरी है, ताकि बीमारियों और उनके आक्रामक व्यवहार पर नियंत्रण रखा जा सके।असल में, यह फैसला इस सोच को भी बदलता है कि आवारा कुत्ते सिर्फ मुसीबत हैं और उन्हें कैद करके या हटाकर ही समस्या का हल निकाला जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने याद दिलाया है कि कुत्ते भी समाज का हिस्सा हैं और उनके अधिकारों की रक्षा करना हमारी ज़िम्मेदारी है। अब असली चुनौती प्रशासन और नगर निगमों के सामने है कि वे कोर्ट के निर्देशों का सही ढंग से पालन करें और कुत्तों की नसबंदी व देखभाल की व्यवस्था समय पर करें।कुल मिलाकर, यह आदेश इंसान और जानवर दोनों के हित में एक संतुलित रास्ता दिखाता है—जहां न सिर्फ लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी बल्कि कुत्तों के जीवन और अधिकारों की भी रक्षा की जाएगी। Comments (0) Post Comment
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