यमन में फांसी से जूझ रही नर्स निमिषा प्रिया को बचाने आगे आए मुस्लिम धर्मगुरु!

यमन में फांसी की सजा का सामना कर रही भारतीय नर्स निमिषा प्रिया के लिए उम्मीद की एक नई किरण सामने आई है।


जहां एक तरफ भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को यह कह दिया है कि उसके पास अब कोई रास्ता नहीं बचा है, वहीं दूसरी तरफ भारत के ग्रांड मुफ्ती कंठपुरम एपी अबूबकर मुसलियार की पहल से एक आखिरी कोशिश शुरू हुई है।


अब यमन में धार्मिक और सामाजिक नेताओं की एक अहम बैठक हुई है, जिसमें फांसी को रोकने के रास्ते पर चर्चा की गई।


इस मीटिंग से भारत में निमिषा की मां और परिजनों को थोड़ी राहत मिली है, लेकिन हालात अभी भी बेहद नाजुक हैं।


कौन हैं ग्रांड मुफ्ती और उन्होंने क्या किया?


कंठपुरम एपी अबूबकर मुसलियार, जो भारत के जाने-माने इस्लामिक स्कॉलर और ग्रांड मुफ्ती हैं, उन्होंने यमन के बड़े सूफी धर्मगुरु शेख हबीब उमर से इस मामले में दखल देने की गुज़ारिश की।


शेख हबीब के प्रतिनिधि हबीब अब्दुर्रहमान अली मशहूर ने इस मसले को गंभीरता से लिया और उत्तरी यमन में बंद कमरे की मीटिंग बुलाई।


इस बैठक में यमनी सरकार के प्रतिनिधि, आपराधिक अदालत के सर्वोच्च न्यायाधीश, मृतक तलाल का भाई और स्थानीय आदिवासी नेता भी शामिल हुए।


फिलहाल मीटिंग में क्या नतीजा निकला, इसकी कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी गई है।


लेकिन जानकारों का मानना है कि यह धार्मिक और सामाजिक संवाद फांसी को टालने की दिशा में एक अहम कदम हो सकता है।


केंद्र सरकार ने क्या कहा सुप्रीम कोर्ट में?


सोमवार को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि यमन में भारतीय नर्स निमिषा प्रिया को फांसी से बचाने के लिए उसके पास अब ज्यादा विकल्प नहीं बचे हैं।


सरकार ने यह भी कहा कि यमन में भारत का कोई दूतावास नहीं है, जिससे हालात और ज्यादा कठिन हो जाते हैं।


इसके अलावा सरकार ने बताया कि मृतक के परिवार की सहमति के बिना कोई भी 'ब्लड मनी' यानी दया दान नहीं दिया जा सकता। अगर पीड़ित परिवार इसे ठुकराता है, तो सरकार के हाथ बंध जाते हैं।


सुप्रीम कोर्ट ने अब केंद्र से इस मामले की स्थिति रिपोर्ट मांगी है और कहा है कि जो भी बातचीत या कोशिश हो रही है, उसकी जानकारी अदालत में दी जाए।


क्या है ब्लड मनी?


ब्लड मनी यानी 'दया दान' एक इस्लामिक कानून है, जिसके तहत अगर किसी की हत्या हो जाती है और मृतक के परिवार वाले चाहें, तो वे हत्यारे को माफ कर सकते हैं, एक तय मुआवज़े के बदले में। यमन में इस कानून को मान्यता प्राप्त है।


लेकिन अगर मृतक का परिवार ब्लड मनी लेने से इनकार कर दे, तो अदालत का फैसला लागू हो जाता है, इस केस में फांसी।


यही वजह है कि अब निमिषा प्रिया की किस्मत पूरी तरह से मृतक के परिवार के फैसले पर टिकी हुई है।


कौन हैं निमिषा प्रिया?


निमिषा प्रिया केरल के पलक्कड़ जिले की रहने वाली एक नर्स हैं, जो 2008 में नौकरी के सिलसिले में यमन गई थीं।


वहां उन्होंने एक यमनी नागरिक तलाल अब्दुल अज़ीज़ के साथ मिलकर बिजनेस शुरू किया था।


कुछ समय बाद उनके बीच विवाद हुआ और मामला इतना बिगड़ गया कि जुलाई 2017 में तलाल की हत्या हो गई।


आरोप है कि निमिषा ने उसे नींद की दवा देकर बांध दिया और इंजेक्शन से दवा दी, जिससे उसकी मौत हो गई।


2018 में यमन की अदालत ने निमिषा को मृत्युदंड की सजा सुनाई। उन्होंने कई बार अपील की, लेकिन 2023 में यमन की सुप्रीम कोर्ट ने अंतिम अपील भी खारिज कर दी।


अब यमन के सरकारी अभियोजक ने आदेश जारी किया है कि उन्हें 16 जुलाई 2025 को फांसी दी जाए।


भारत सरकार और परिवार की लड़ाई


निमिषा की मां और परिवार पिछले कई सालों से उनकी जान बचाने के लिए जूझ रहे हैं। उन्होंने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री और कई अदालतों का दरवाजा खटखटाया है।


सरकार की ओर से भी कुछ राजनयिक कोशिशें की गईं, लेकिन यमन में राजनीतिक अस्थिरता और भारत का कोई दूतावास न होने के चलते कोशिशें ज्यादा असरदार साबित नहीं हो सकीं।


अब परिवार को केवल इसी बात की उम्मीद है कि ग्रांड मुफ्ती की कोशिशें रंग लाएं और मृतक का परिवार ब्लड मनी स्वीकार कर ले। अगर ऐसा होता है, तो निमिषा की फांसी टल सकती है।


आप क्या सोचते हैं इस खबर को लेकर, अपनी राय हमें नीचे कमेंट्स में जरूर बताएँ।


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