आज से दो दशक पहले तक वैश्विक स्तर पर जनसंख्या बढ़ने को लेकर चिंता जताई जाती थी, लेकिन अब तस्वीर पलट चुकी है। 21वीं सदी के तीसरे दशक में सबसे बड़ी चिंता उन देशों में देखी जा रही है जहां जनसंख्या तेजी से घट रही है।चीन, रूस, जापान, जर्मनी, दक्षिण कोरिया जैसे देश अब इस समस्या का सामना कर रहे हैं कि उनकी जन्म दर लगातार गिर रही है और युवा आबादी की जगह बुजुर्गों की संख्या बढ़ती जा रही है।हर साल 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस (World Population Day) मनाया जाता है ताकि जनसंख्या से जुड़े मुद्दों पर ध्यान दिया जा सके।2025 में इस दिवस का फोकस अब जनसंख्या वृद्धि नहीं बल्कि "जनसंख्या घटने से होने वाले सामाजिक और आर्थिक प्रभावों" पर है।चीन, जो दशकों तक "वन चाइल्ड पॉलिसी" के चलते आबादी को सीमित करता रहा, अब खुद अपने नागरिकों को दो और तीन बच्चे करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। रूस पैसे देकर नागरिकों को संतानोत्पत्ति के लिए प्रोत्साहित कर रहा है।जापान और दक्षिण कोरिया में जन्म दर इतनी गिर चुकी है कि वहां स्कूल बंद हो रहे हैं और गांवों में जनसंख्या लगभग शून्य हो चुकी है।गिरती जनसंख्या के पीछे क्या हैं वजहें?समझने के लिए सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि आखिर जनसंख्या घट क्यों रही है? इसके पीछे एक नहीं, कई वजहें हैं।आधुनिक जीवनशैली, महंगाई, करियर पर ध्यान देना, देर से शादी करना और कम संतान को प्राथमिकता देना जैसे सामाजिक-आर्थिक कारणों ने जन्म दर को प्रभावित किया है।आज की युवा पीढ़ी महंगे होते जीवन और बच्चों की परवरिश के बढ़ते खर्च को देखते हुए एक या दो बच्चों से अधिक का सोचती ही नहीं है।महिलाएं अब अपने करियर पर ज्यादा फोकस कर रही हैं और संतानोत्पत्ति को टालना चाहती हैं। वहीं कई विकसित देशों में प्रवासन के चलते वहां की मूल युवा आबादी घट रही है।चीन में दशकों तक सिंगल चाइल्ड पॉलिसी रही, जिसका नतीजा ये हुआ कि अब उस देश की औसत उम्र तेजी से बढ़ रही है और युवा वर्ग की संख्या कम हो गई है।जापान में यह स्थिति और भी गंभीर है, वहां इतनी बुजुर्ग आबादी हो गई है कि रोबोट को नर्सिंग होम में उनकी देखभाल के लिए लगाया जा रहा है।अब सवाल उठता है कि आखिर गिरती जनसंख्या से देशों को डर क्यों लग रहा है? आइए जानें इसकी 5 प्रमुख वजहें:बुजुर्गों की बढ़ती आबादी से सरकार पर बोझजब जन्म दर कम होती है तो आबादी में बुजुर्गों का प्रतिशत बढ़ने लगता है। इससे सरकार पर पेंशन, स्वास्थ्य सुविधाएं और देखभाल का बोझ बढ़ता है।जापान जैसे देशों में यह बोझ इतना अधिक हो गया है कि वहां रोबोट से बुजुर्गों की सेवा कराई जा रही है।कामकाजी आबादी की कमीगिरती जन्म दर का सबसे सीधा असर वर्कफोर्स यानी कामकाजी वर्ग पर पड़ता है। युवा कम होंगे तो काम करने वाले हाथ भी कम होंगे।इससे उत्पादकता घटेगी, उद्योगों को कुशल श्रमिक नहीं मिलेंगे और अर्थव्यवस्था धीमी पड़ जाएगी।सरकारी आमदनी में गिरावटजब युवा कम होंगे तो टैक्सपेयर की संख्या घटेगी। मांग और खपत कम होगी। सरकार की कमाई घटेगी और विकास कार्यों पर असर पड़ेगा।इसलिए जनसंख्या में गिरावट अब सिर्फ सामाजिक नहीं, बल्कि आर्थिक चिंता का विषय बन गई है।मजबूरी में इमीग्रेशन और खर्च में इजाफाजनसंख्या में गिरावट झेल रहे देशों को अब काम के लिए विदेशों से लोगों को बुलाना पड़ता है।इससे एक तो सांस्कृतिक संतुलन बिगड़ता है, दूसरा ये लोग कमाई का बड़ा हिस्सा अपने देश भेजते हैं, जिससे होस्ट कंट्री को वित्तीय नुकसान होता है।जनसंख्या असंतुलन और सामाजिक तनावमहिलाओं का करियर को प्राथमिकता देना और बच्चों को जन्म न देना जनसंख्या में लिंग असंतुलन भी पैदा कर रहा है। इससे भविष्य में विवाह, परिवार और सामाजिक ढांचे पर भी असर पड़ सकता है।वर्ल्ड पॉपुलेशन डे की शुरुआत कब हुई?11 जुलाई 1987 को दुनिया की आबादी 5 अरब पार कर गई थी। इसके बाद 1989 में UNDP (United Nations Development Programme) ने जनसंख्या पर बढ़ते दबाव के चलते जागरूकता बढ़ाने के लिए 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाने का फैसला लिया।1990 से यह हर साल मनाया जाता है और अब इसमें दुनिया के 90 से अधिक देश हिस्सा लेते हैं।UN की रिपोर्ट "World Population Prospects 2019" में कहा गया था कि भारत 2027 तक चीन को जनसंख्या के मामले में पीछे छोड़ देगा, लेकिन भारत ने यह आंकड़ा उससे पहले ही पार कर लिया और आज वह दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन चुका है।कुल मिलाकर जहां एक ओर भारत जैसे देशों में जनसंख्या नियंत्रण की बात होती है, वहीं दूसरी ओर चीन, रूस और जापान जैसे विकसित देश इस चिंता में डूबे हैं कि कैसे अपने देश की जनसंख्या को स्थिर रखा जाए।जनसंख्या का असंतुलन अब एक वैश्विक मुद्दा बन गया है, जहां किसी देश को जनसंख्या बढ़ने से डर है, तो किसी को घटने से।आप क्या सोचते हैं इस खबर को लेकर, अपनी राय हमें नीचे कमेंट्स में जरूर बताएँ। Comments (0) Post Comment
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